Sunday 2 February 2014

मानवीय एकता सम्मेलन ने लोकतंत्र व मानवताविरोधी ताकतों को दी चुनौती


अहमदाबाद। देश के विभिन्न प्रदेशों से आए अनेक प्रतिनिधियों की भागीदारी के साथ स्थानीय गुजरात विधापीठ के अहिंसा सभागार में दो-दिवसीय मानवीय एकता सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें वक्ताओं ने सूबों में बढ़ रही साम्प्रदायिकता एवं जातिवाद के उभार के बरक्स जनसरोकारों की चर्चा की तथा लोकतंत्र को अक्षुण्ण बनाए रखने पर विचार वयक्त किए।
शनिवार को सम्मेलन का उदघाटन करते हुए गुजरात उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता गिरीश भार्इ पटेल ने कहा कि गुजरात में सत्ता की ताकतें साम्प्रदायिकता और जातिवाद की पक्षधर और स्त्री विरोधी एवं दलित विरोधी हैं। वैशिवक पूंजीवाद, आत्मकेंदि्रत उपभोक्तावाद और अपने स्वार्थ को पूरा करने की आदर्शहीन इस मानवविरोधी व्यवस्था का मुकाबला एक व्यावहारिक समाजवादी व्यवस्था के जरिये ही किया जा सकता है। उन्होंने सलाह देते हुए कहा कि लोकतंत्र को सुरक्षित रखने और मजबूत बनाने के लिए साम्प्रदायिक और वर्ग विभाजक ताकतों को निष्प्रभावी करना ही होगा।
पीयूसीएल के गौतम ठाकर ने कहा कि हिंसा और साम्प्रदायिकता से संघर्ष करने के लिए मानवीय एकता की ताकत को संगठित और मजबूत बनाने के उददेश्य से मानवीय एकता सम्मेलन का आयोजन अहमदाबाद में किया गया। उन्होंने आगाह किया कि साम्प्रदायिकता की पक्षधर लोकतंत्र विरोधी ताकतें विकास के मुखौटे में लोकतंत्र को कमजोर करेंगी। गुजरात खेत विकास परिषद के इन्दु कुमार जानी ने जोर दिया कि जनतंत्र, लोकशाही, अहिंसा, मानवीय मूल्यों और पर्यावरण संरक्षण को जोड़कर ही नया समाज बनेगा। अशोक श्रीमाली ने कहा कि धार्मिक कटटरवाद और जातिवादी भेदभाव के साथ गठजोड़ कर आर्थिक साम्राज्यवाद जड़ें जमा रहा है। गुजरात की तरह ही देश में भी अब इसी माडल को लागू करने की तैयारी की जा रही है।
सम्मेलन के पहले सत्र में ''विकास, भ्रष्टाचार और धार्मिक फासीवाद पर चर्चा हुर्इ। अर्थशास्त्री पो. रोहित शुक्ल ने कहा कि विकास के नाम पर अन्तर्राष्ट्रीय पूंजीवाद को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है। जनविरोधी कानूनों और कदमों से ध्यान भटकाने का सबसे अच्छा तरिका साम्प्रदायिकता और धार्मिक आडम्बरों को हवा देना है, जो गुजरात में किया गया है। क्या कारण है कि देश में सबसे सक्षम प्रशासन का दम्भ भरने वाली गुजरात सरकार आसाराम और नारायण सार्इं सरीखों की कारगुजारियों से अनजान बनी रही? इस विषय पर पन्नालाल सुराणा, जतिन देसार्इ, उत्तम परमार, अशोक चौधरी, शेखर सोनाळकर व अजुर्न ने भी अपने सार्थक विचार रखे।
दूसरे सत्र में ''जातिवाद और साम्प्रदायिकता विषय पर डा. नितिन गुर्जर, रजिया पटेल, अफरोज, गोल्डी एम. जार्ज, डा. रंजीत, गणपति भोर्इ, तुकाराम निशि, दुर्गा झा, पंचदेव, अब्दुल भोर्इ आदि वक्ताओं ने अपने विचार रखे। उन्होंने ध्यान दिलाया कि घर, परिवार और स्कूल से ही यह विभाजक विसंगतियां जड़ें जमाने लगती हैं। नए मानवीय मूल्यों के विकास से ही इनसे छुटकारा पाया जा सकता है। सम्मेलन के दूसरे दिन आधार-पत्र पर गहन विचार-विमर्श हुआ। विभिन्न प्रदेशों से आए प्रतिनिधियों ने अपनी राय रखी और भावी कार्यक्रमों का निर्धारण किया गया।
'नफरत और हिंसा के खिलाफ मानवीय एकता, 'पीयूसीएल, और 'गुजरात खेत विकास परिषद द्वारा संयुक्त रूप से इस सम्मेलन का आयोजन किया गया। मानवीय एकता के संयोजक जयंत ने बताया कि 2009 से शुरू की गर्इ इस पहल के तहत भुवनेश्वर (ओडिशा), जलगांव (महाराष्ट्र), पटना (बिहार), मधुबनी (बिहार), तथा पुणे (महाराष्ट्र) के बाद यह छठा मानवीय एकता सम्मेलन था।

गौतम ठाकर
09825382556

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