जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी का
परिचय
जनमुक्ति
संघर्ष वाहिनी [जसवा] ‘शान्तिमय सम्पूर्ण क्रान्ति विचारधारा’ का संगठन है | जसवा
का लक्ष्य है – इस विचारधारा के ज़रिये स्वतंत्रता और समानता के जीवन मूल्यों की
बुनियाद पर शोषणमुक्त भारतीय समाज का पुनर्गठन – एक ऐसे सन्तुलित जनतान्त्रिक समाज
की रचना, जहाँ किसी किस्म की गैरबराबरी न हो, कोई भेदभाव न हो; आदमी का आदमी के
द्वारा किसी भी तरह का कोई शोषण न हो ! सम्पूर्ण क्रान्ति विचारधारा की प्रमुख
विशेषताएँ हैं-- शान्तिमयता, लोकतन्त्र,
निर्दलीयता, और बहुआयामी संघर्ष व पुनर्रचना |
लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 1975 में ‘सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन’ को सतत परिवर्तन[ लगातार सकारात्मक बदलाव ] का आन्दोलन बनाने के लिए युवा संगठन –
‘छात्र-युवा
संघर्ष वाहिनी’ [छायुसवा] की स्थापना की थी | यह 14 से 30 वर्ष की आयु-सीमा के बीच
के किशोरों-युवाओं का जुझारू युवा संगठन था, और है | छायुसवा के तीसोत्तर [ 30 बरस की आयु-सीमा पार करने
वाले ] साथियों का बिखराव न हो – इसकी कुछ कोशिशें होती रहीं, लेकिन इस सिलसिले
में एक गम्भीर पहल 1987 में महाराष्ट्र के कुर्हे-पानाचे, भुसावल में आयोजित
छायुसवा की राष्ट्रीय परिषद द्वारा हुई | वहाँ ‘सम्पूर्ण क्रान्ति के लिए संगठन
निर्माण समिति’ का गठन हुआ | उम्र-सीमा से मुक्त इस प्रस्तावित संगठन के
विचार-पक्ष को स्पष्ट करने के लिए 3-सदस्यीय प्रारूपण समिति बनाई गई |
स्थापना
30-31 दिसम्बर 1989 – 1 जनवरी 1990 की तारीखों में मुम्बई के
जनता केन्द्र में इसी सन्दर्भ में सम्मेलन आयोजित किया गया | सम्मेलन में शान्तिमय
सम्पूर्ण क्रान्ति के लिए आयु-सीमा मुक्त निर्दलीय संगठन -- ‘जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी’ [जसवा] की
स्थापना की गई | सम्मेलन में जसवा के विचार-पक्ष को स्पष्ट करने वाले प्रारूप -- ‘सम्पूर्ण क्रान्ति का वक्तव्य’ नामक
जनमुक्ति घोषणापत्र को स्वीकृत किया गया | इस सम्मेलन में 8 प्रदेशों – महाराष्ट्र,
गोवा, आन्ध्र प्रदेश, प० बंगाल, ओड़िशा, [झाड़खण्ड सहित] बिहार, [उत्तराखण्ड सहित]
उत्तर प्रदेश, तथा दिल्ली से करीब 400 साथियों की भागीदारी हुई |
सदस्यता
जसवा के संक्षिप्त संविधान के मुताबिक ऐसे कोई भी व्यक्ति [ युवक या युवती, स्त्री या पुरुष ] जसवा के सदस्य हो सकते हैं, जो --
1. सम्पूर्ण क्रान्ति के वक्तव्य [ जनमुक्ति घोषणापत्र ] में व्यक्त विचारों से सहमति रखते हों |
2.
हर स्तर के सामाजिक भेदभाव को विचार व व्यवहार के स्तर पर
अमान्य करते हों |
3.
संगठन के कामों में नियमित रूप से एक निश्चित समय देने की
तैयारी रखते हों |
4.
संगठन को अपनी आय का निश्चित हिस्सा देने को तैयार हों |
सांगठनिक स्वरूप
जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी का सांगठनिक ढाँचा स्थानीय इकाइयों à आंचलिक\प्रदेश इकाइयों à राष्ट्रीय संगठन पर आधारित है | संगठन के सभी पूर्णकालिक साथी तथा आंचलिक\प्रदेश इकाइयों के प्रतिनिधि राष्ट्रीय परिषद का गठन करते हैं | राष्ट्रीय परिषद जसवा की सर्वोच्च नीति-निर्धात्री बॉडी है | राष्ट्रीय परिषद हर दो बरस में राष्ट्रीय कार्यकारिणी को पुनर्गठित करती है, और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के संयोजक का चयन करती है | आंचलिक\प्रदेश इकाइयाँ अपनी-अपनी आंचलिक\प्रदेश कार्यसमिति का गठन करती हैं और उसके संयोजक का चयन करती हैं | इनका कार्यकाल भी दो बरस का होता है | संयोजक की ज़िम्मेदारी किसी भी साथी को एकबारगी लगातार दो कार्यकालों से अधिक नहीं दी जाती – छायुसवा की इस परम्परा को जसवा ने भी अपनाया है | संगठन में फ़ैसले सर्वसम्मति से या आम राय से लेने की मज़बूत परम्परा है [ यद्यपि संगठन का संविधान बहुमत से निर्णय की इजाज़त देता है, जो व्यवहार में अपवाद जैसा ही है ] | अभी 5 प्रदेशों – महाराष्ट्र, ओड़िशा, झाड़खण्ड, बिहार व उत्तर प्रदेश में जसवा की प्रदेश इकाइयाँ हैं | इसके अलावा गुजरात में ‘आर्च वाहिनी’ की पहचान के साथ सक्रिय इकाई है | इसके अतिरिक्त प० बंगाल, दिल्ली और उत्तराखण्ड में जसवा के साथी नियमित सम्पर्क में हैं |
पृष्ठभूमि
वस्तुतः लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा 1975 में गठित ‘छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी’ [छायुसवा] का विस्तार है ‘जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी’ [जसवा] | इतिहास के गलियारे में लौटें और याद करें – 1974 में बिहार में छात्र-आन्दोलन की शुरुआत हुई थी – शिक्षा व्यवस्था में बदलाव और सुधार की माँगों के साथ; और मूल्यवृद्धि, महँगाई और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ ! आन्दोलित छात्र शिक्षा को रोज़गारपरक बनाने, शिक्षित बेरोज़गारों को काम या बेरोज़गारी भत्ता देने; फ़ीस\मेस-शुल्क\कापी-किताबों के मूल्यों को सस्ता और तर्कसंगत बनाने; छात्रवृत्तियों की संख्या और राशि को बढ़ाने; छात्र-संघों की स्थापना करने; विश्वविद्यालयों में नीति-निर्धारण समितियों, सीनेट, सिंडिकेट, अकादमिक काउन्सिल में छात्रों को प्रभावी प्रतिनिधित्व देने की माँग कर रहे थे; साथ ही महँगाई, मूल्यवृद्धि और भ्रष्टाचार की पुरज़ोर ख़िलाफ़त करते हुए वे सड़कों पर निकल पड़े थे | बिहार सरकार ने बातचीत करने और वाजिब माँगें मानने के बजाय निर्मम दमन का रास्ता अपनाया | दमन से छात्र-आन्दोलन न दबा, न थमा, बल्कि ज़्यादा व्यापक और तेज़ हो गया | आन्दोलन का नेतृत्व करने वाली ‘बिहार राज्य छात्र संघर्ष समिति’ ने जयप्रकाश नारायण से इस आन्दोलन की अगुआई करने और दिशानिर्देशन का आग्रह किया, जिसे जयप्रकाश जी [जेपी] ने दो शर्तों के साथ स्वीकार किया –
1. छात्र-आन्दोलन व संघर्ष पूर्णतया शान्तिमय होगा – आँसूगैस-लाठी-गोली का सामना करते हुए भी; और
2. छात्र-आन्दोलन किसी
राजनैतिक दल \ दलों के नेतृत्व में नहीं चलेगा और पूर्णतया निर्दलीय होगा |
सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन – छायुसवा का गठन
5 जून 1974 को पटना के गांधी मैदान में जेपी ने कुछ माँगों पर केन्द्रित छात्र-आन्दोलन को व्यवस्था परिवर्तन के ‘सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन’ में रूपान्तरित करने की ऐतिहासिक घोषणा की | उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि इस परिवर्तन का वाहक और अगुआ ‘युवा’ होगा | व्यापक जनसंघर्ष के लिए ‘छात्र-युवा संघर्ष समितियों’ और ‘जन संघर्ष समितियों’ का गठन देश भर में हुआ; लेकिन ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ का लक्ष्य हासिल करने, और ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के मूल्यों पर आधारित नया समाज बनाने के लिए समर्पित युवाओं के कैडर संगठन की ज़रूरत जेपी ने खासतौर से महसूस की और उन्होंने इसकी स्थापना की – 14 से 30वर्ष की आयु-सीमा का यही युवा संगठन था ‘छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी’ [छायुसवा], जिसकी स्थापना 1 जनवरी 1975 को हुई | जेपी इसके संस्थापक व एकमेव [ पहले व अन्तिम ] ‘वाहिनी नायक’ थे | स्वतन्त्रता, सामाजिक-आर्थिक समता, लोकतन्त्र और यौनिक समानता के मूल्यों की बुनियाद पर इसका गठन हुआ – शोषणमुक्त व्यापक मानवीय समाज की स्थापना के से उद्देश्य ! खुद दलीय राजनीति से बाहर रहकर जनता को राजनैतिक दृष्टि से इतना मज़बूत और सचेत बनाना कि वह सत्ता प्रतिष्ठान को नियन्त्रित कर सके – ‘निर्दलीयता’ के इस राजनैतिक सोच को छायुसवा ने अपनाया | ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के लक्ष्य को हासिल करने हेतु व्यवस्था परिवर्तन के संघर्ष के लिए ‘शान्तिमयता’ [ शान्तिमय संघर्ष, जिसमें हिंसा का स्पष्ट निषेध है ] का रास्ता अपनाया |
छायुसवा से मिली परिवर्तन के संघर्षों की विरासत
आपातकाल के ख़िलाफ़ और लोकतान्त्रिक आज़ादी की बहाली के राष्ट्रीय संघर्ष में छायुसवा ने जेपी के प्रेरक नेतृत्व में अपनी निर्णायक भागीदारी की | 1977 के बाद छायुसवा ने देश के विभिन्न इलाकों में आमजन के हितों से जुड़े अनेक जनसंघर्षों को संगठित किया, निर्णायक संघर्ष किया और अनूठी कामयाबियाँ हासिल कीं | ऐसे कुछ प्रमुख संघर्ष हैं –
10 हज़ार एकड़ ज़मीन पर काबिज़
बिहार के बोधगया मठ-महन्त के ख़िलाफ़ भूमिहीन मज़दूरों का भूमि संघर्ष [ मुक्त हुई
भूमि का हक़ संघर्षरत 10 हज़ार भूमिहीन मज़दूर परिवारों को मिला ]; पचमनिया, मधुबनी
[बिहार] में 1 हज़ार एकड़ ज़मीन पर संथाल किसानों का भूमि संघर्ष; पलामू
[बिहार, अभी झाड़खण्ड] में मज़दूरों-किसानों का भूमि संघर्ष; शिरपुर, धुलिया
[महाराष्ट्र] में दलित व आदिवासी श्रमिकों का न्यूनतम मज़दूरी पाने और लाखों रुपयों
की बकाया धनराशि पाने का संघर्ष; मुम्बई [महाराष्ट्र] में झोपड़पट्टी हटाने के
ख़िलाफ़ और वहाँ बुनियादी नागरिक सुविधाएँ हासिल करने का संघर्ष; कुर्हे-पानाचे,
जलगाँव [महाराष्ट्र] के इलाके में पानी और रोज़गार का संघर्ष; मेटीखेड़ा, यवतमाल एवम्
म्हसवड़, सातारा [महाराष्ट्र] में खेतिहर मज़दूरों का संघर्ष; ओड़िशा के गन्धमार्दन
पर्वत के इलाके में पारिस्थितिकी तन्त्र व पर्यावरण सुरक्षा के लिए बाल्को के
बॉक्साइट खनन के ख़िलाफ़ संघर्ष; आगरा [उ०प्र०] में झोपड़पट्टी हटाने के ख़िलाफ़ और
अपनी वास-भूमि पर हक़ का संघर्ष; इलाहाबाद [उ०प्र०] के ग्रामीण इलाके में पुलिस दमन
के ख़िलाफ़ संघर्ष और सामाजिक सुधार के आन्दोलन; गुजरात में नर्मदा पर सरदार सरोवर
परियोजना के विस्थापितों के न्यायपूर्ण पुनर्वास के संघर्ष की शुरुआत; फ़िरकापरस्ती
और साम्प्रदायिक विद्वेष के ख़िलाफ़ और आपसी सौहार्द के लिए व्यापक अभियान; असाम
आन्दोलन के समर्थन में पटना से गुवाहाटी पैदल-मार्च और आन्दोलनकारियों के साथ
केन्द्र सरकार के समझौते में अहम भूमिका निभाना ................आदि |
सामाजिक-सांस्कृतिक
मोर्चे पर भी कई अनूठी पहलकदमियाँ और कामयाबियाँ छायुसवा के नाम दर्ज हैं | जातिवादी
और धार्मिक आग्रहों से मुक्त आचार-विचार और स्त्री-पुरुष समता के मुद्दों पर
छायुसवा सिद्धान्त और विचार तक ही सीमित नहीं रही, व्यावहारिक धरातल पर यह उसके हर
ऐक्शन में स्पष्ट रहा है – युवतियों और युवकों की संगठन और खासकर नेतृत्व में एक
जैसी समान भागीदारी; जातिवादी श्रेष्ठता-चिन्हों [ जैसे जनेऊ, तिलक-टीका ] तथा
स्त्रियों के लिए विभेदकारी चिन्हों [ जैसे सिन्दूर इत्यादि ] का पूर्ण त्याग एवम्
बहिष्कार; पारम्परिक कर्मकाण्डों से मुक्त आपसी समझदारी से प्रेम विवाह तथा
अन्तर्जातीय, अन्तर्धर्मीय व अन्तर्प्रान्तीय वैवाहिक सम्बन्धों की परम्परा;
व्यक्तिगत परिचय में पिता की पहचान के साथ माँ की पहचान की अनिवार्यता का मुखर
समर्थन व प्रयोग; जातिसूचक नाम का त्याग; नारीमुक्ति संघर्ष सम्मेलनों में छायुसवा
की सक्रिय भागीदारी; रोज़गार और राजनीति में महिला आरक्षण का मुखर समर्थन; महिलाओं
के ख़िलाफ़ अत्याचार और उत्पीड़न का पुरज़ोर विरोध – राजस्थान में पुलिसकर्मियों द्वारा
सामूहिक बलात्कार के ख़िलाफ़ कोटपुतली [राजस्थान] से दिल्ली तक पैदल-मार्च | छायुसवा
की प्रतिबद्धता के चलते बोधगया में मठ के कब्ज़े से मुक्त हुई ज़मीन का हक़ महिलाओं
के नाम से मिला – ऐसा भारत के इतिहास में पहली बार हुआ |
जारी है विरासत में मिली परम्परा
जनपक्षधर सक्रियता और संघर्षों की छायुसवा की इस प्रतिबद्धता और परम्परा को ‘जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी’ [जसवा] ने सहेजा है, निरन्तरता दी है | छायुसवा द्वारा संचालित सफल जनसंघर्षों के क्षेत्रों से जसवा ने जीवन्त सम्पर्क बनाने की कोशिशें की हैं | खासकर बोधगया के सफल भूमि संघर्ष के बाद उपजी समस्याओं के हल और ‘वनाधिकार कानून 2006’ को प्रभावी ढंग से लागू करने का अभियान वहाँ जारी है | गुजरात में जसवा के साथियों ने ‘आर्च वाहिनी’ के बैनर तले डेडियापाड़ा के 25 गाँवों में वनाधिकार कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने में सफलता पाई है – वहाँ 6000 परिवारों को अपना हक़ मिला है | इसी सन्दर्भ में ‘आर्च वाहिनी’ की याचिका पर गुजरात उच्च न्यायालय ने गुजरात में शेष 1 लाख 28 हज़ार परिवारों के हक़ में अपना फ़ैसला अभी 2013 में दिया है | इसके पहले वहाँ नर्मदा पर सरदार सरोवर बाँध परियोजना के कारण विस्थापितों के न्यायपूर्ण पुनर्वास का सफल संघर्ष किया गया और भारत में पहली बार मॉडल बनने वाली पुनर्वास नीति बनी और लागू हुई | झाड़खण्ड के चांडिल क्षेत्र में सुवर्णरेखा बहुद्देश्यीय परियोजना के विस्थापितों का संघर्ष जसवा, छायुसवा और विस्थापित मुक्ति वाहिनी ने सफलतापूर्वक चलाया, और एक बेहतर पुनर्वास नीति लागू करवाने में सफलता पाई | झाड़खण्ड व अन्य स्थानों पर मनमाने भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ अभियानों को संगठित करने, उनमें भागीदारी करने में सक्रिय भूमिका अदा की | इस आन्दोलन की शुरुआत के समय जहाँ प्रत्येक विस्थापित परिवार को 5250 रु० का पुनर्वास पैकेज मिलता था, वहीँ आज 6 लाख 57 हज़ार रु० का पुनर्वास पैकेज मिल रहा है | उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में घूरपुर में पुलिस द्वारा फ़र्जी मुठभेड़ के ख़िलाफ़ सफल किसान संघर्ष; और शंकरगढ़ इलाके की सिलिका सैंड खदानों के खनन मज़दूरों के शोषण के ख़िलाफ़ संघर्ष को संगठित किया गया | शोषण से मुक्ति, वाजिब मज़दूरी, और मज़दूरों के समूह द्वारा खनन पट्टा पाने का लक्ष्य हासिल किया गया | ओड़िशा के झारसूगुड़ा क्षेत्र में ‘वनाधिकार कानून’ एवम् ज़मीन के हक़ के लिए संघर्ष जारी है | वहाँ मयूरभंज में जाम्भिरा, हल्दिया और बाउरा में बाँध व जलाशयों के निर्माण से होने वाले विस्थापन के ख़िलाफ़, और पुनर्वास के लिए संघर्ष जारी है |
नफ़रत और हिंसा के ख़िलाफ़
मानवीय एकता
बाबरी मस्जिद ध्वंस के पहले जसवा के साथियों ने इस विवाद को
रचनात्मक ढंग से हल करने के लिए सरकार एवम् सम्बन्धित पक्षों से एक राय पर आने की
ठोस पहल की | तत्कालीन प्रधानमन्त्री को इस विवाद को हल करने वाला एक वैकल्पिक
मॉडल भी पेश किया गया | 1992 में अयोध्या में बाबरी
मस्जिद ध्वंस के बाद जसवा के साथियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में उदारवादी लोगों व समूहों के साथ ‘इन्सानी
एकता मुहिम’\ ‘इन्सानी बिरादरी’ सरीखे समन्वयों का गठन किया – साम्प्रदायिकता के
ख़िलाफ़ सक्रिय रहे, साम्प्रदायिक विद्वेष व उन्माद का प्रभावी प्रतिवाद-प्रतिरोध
किया, आपसी सौहार्द बनाये रखने में प्रभावी भूमिका अदा की |
2008 में ओड़िशा में कन्धमाल में ईसाई संस्थाओं व लोगों के ख़िलाफ़
साम्प्रदायिक हिंसा, और महाराष्ट्र में हिन्दीभाषियों पर हमलों के बाद जसवा ने
मानवीय एकता की एक पहल की | मानवीय एकता को तोड़ने वाले 5 प्रमुख कारकों – आतंकवाद
या दहशतगर्दी; साम्प्रदायिक विद्वेष और हिंसा; जातिवादी भेदभाव,
नफ़रत और हिंसा; क्षेत्रवाद-भाषावाद; और स्त्रियों के प्रति अमानुषिकता – को
चिन्हित किया गया | ‘मानवीय एकता सम्मेलनों’ का सिलसिला शुरू किया गया; आधार-पत्र
तैयार कर बहस चलाई गई [ जो जारी है ] | इस प्रक्रिया के ज़रिये ‘नफ़रत और हिंसा के ख़िलाफ़ मानवीय एकता’ नामक
व्यापक संगठन की स्थापना और उसके तहत ‘मानवीय एकता मित्र-समूह’ के निर्माण
में जसवा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |
राजस – राष्ट्रीय जनतान्त्रिक समन्वय
देश में सहमना संगठनों को बहस चलाकर, वैचारिक सहमति बनाकर ‘राष्ट्रीय जनतान्त्रिक समन्वय’ [राजस] का निर्माण किया, ताकि जनपक्षधर माँगों के समर्थन में प्रभावी एकजुट संघर्ष संगठित हो | राजस ने ‘काम के अधिकार’ को मौलिक अधिकार बनाने के लिए कोलकाता से दिल्ली सायकिल-मार्च का आयोजन किया; और ‘प्राकृतिक संसाधनों पर जनता के अधिकार’ के लिए झाड़खण्ड और ओड़िशा में व्यापक भागीदारी के राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन किया | इन आयोजनों में जसवा की सक्रिय भूमिका रही |
‘निर्दलीयता’ का अभियान
जसवा द्वारा ‘निर्दलीयता’ की अवधारणा को स्पष्ट करने का अभियान जारी है | इसकी वैचारिक प्रक्रिया को विकसित करने के लिए सहमना समूहों के साथ ‘सत्तामुक्ति प्रवाह’ नामक विचार मंच का गठन किया गया है |
‘चुने हुए जनप्रतिनिधियों की वापसी के अधिकार’ [ राइट
टु रिकाल ] और ‘उम्मीदवारों को ख़ारिज करने के अधिकार’ [ राइट
टु रिजेक्ट ] के मुद्दों पर दिसम्बर 2012 में पटना में राष्ट्रीय
सम्मेलन आयोजित किया गया; और इसे एक प्रभावी अभियान बनाने की कोशिश जारी है |
जाति-धर्म मुक्त नागरिकता
जसवा ने 2011 की जनगणना के तहत जाति और धर्म की पहचानों से मुक्त नागरिकों की अलग से पहचान करने और जनगणना में उनकी इस खास पहचान को अलग दर्ज करने की माँग केन्द्र सरकार से की थी, जिसे मानते हुए केन्द्र सरकार ने जाति-धर्म मुक्त नागरिकों की पहचान अलग कालम में दर्ज करने की व्यवस्था की |
शिक्षा के व्यापारीकरण की ख़िलाफ़त
जसवा शिक्षा के व्यापारीकरण-बाज़ारीकरण के ख़िलाफ़ है और इस सन्दर्भ में चलने वाली तमाम गतिविधियों का वह समर्थन करती है | महाराष्ट्र में ‘शिक्षण-व्यापारीकरण विरोधी मंच’ द्वारा आयोजित की जाने वाली गतिविधियों की वह सक्रिय भागीदार है | छायुसवा ने भी अपनी मुख्य गतिविधियों में शिक्षा के बाज़ारीकरण की ख़िलाफ़त के मुद्दे को शामिल कर रखा है | इस सन्दर्भ में जसवा उसकी सहयोगी व भागीदार है |
स्त्रियों पर अत्याचार, उत्पीड़न की ख़िलाफ़त
स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार, उत्पीड़न के ख़िलाफ़ जसवा बेहद
सम्वेदनशील है | देश में घटने वाली ऐसी तमाम घटनाओं पर जसवा की सक्रिय इकाइयाँ
अपना मुखर प्रतिवाद दर्ज करती हैं | स्थानीय घटनाओं का सक्रिय प्रतिरोध जसवा की
इकाइयाँ करती हैं | स्त्री-पुरुष समता को सुनिश्चित करने वाले हर ज़रूरी कदम की
जसवा समर्थक है | रोज़गार और राजनीति में महिलाओं के आरक्षण की समर्थक है |
महाराष्ट्र में जसवा के साथियों द्वारा कन्या भ्रूण-हत्या के ख़िलाफ़ अभियान जारी है
– वहाँ अवैध तरीके से गर्भस्थ भ्रूण की लैंगिक-यौनिक पहचान करने वाली क्लीनिकों और
चिकित्सकों की पहचान की गई है और उन्हें क़ानूनी शिकंजे में लाया गया है – यह
अभियान वहाँ जारी है |
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