विचार पक्ष


जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी [ जसवा ] का विचार-पक्ष [ संक्षिप्त सारांश ]

* जनतन्त्र

     जसवा राजनैतिक तौर पर जागरूक, सचेतन भारतीय नागरिकों के ऐसे जनतन्त्र में यकीन रखती है, जो अपने नागरिकों के सक्रिय-सार्थक हस्तक्षेप के ज़रिये पहले के मुक़ाबले ज़्यादा बेहतर, ज़्यादा उदार, ज़्यादा जनपक्षधर, ज़्यादा जवाबदेह और ज़्यादा विकेन्द्रित होता जाएगा | इस दिशा में बढ़ने के लिए मौजूदा ‘दल आधारित प्रातिनिधिक जनतन्त्र’ [रेप्रिजेंटटिव डिमोक्रसी] को ‘जनाधारित व्यापक भागीदारी के जनतन्त्र’ [पाटिसिपेटरी डिमोक्रसी] में बदलने की ज़रूरत है | यह प्राथमिक लक्ष्य लोक उम्मीदवारों को तय करने, उन्हें चुनने और उनपर प्रभावी जन नियन्त्रण क़ायम करने से हासिल होगा | मौजूदा ‘वोट का अधिकार’ [ राइट टु वोट ] अधूरा अधिकार है; उसे ‘उम्मीदवारों को ख़ारिज करने के अधिकार’ [ राइट टु रिजेक्ट ] और ‘चुने प्रतिनिधि को वापस बुलाने के अधिकार’ [ राइट टु रिकाल ] के साथ पूरा बनाना होगा |
      कार्यपालिका [ सरकार ] और विधायिका [ संसद \ विधानसभा-विधानपरिषद ] के जनविरोधी फ़ैसलों और क़दमों के सक्रिय विरोध और संगठित प्रतिरोध के ज़रिये सार्थक नागरिक हस्तक्षेप की ताक़त बढ़ेगी | न्यायपालिका [ स्थानीय न्यायालय, उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय ] के भी जनविरोधी फ़ैसलों के मुखर रचनात्मक प्रतिवाद से [ अवमानना की आशंका से ] हिचकना ग़ैरज़रूरी है | इस तरह का सार्थक नागरिक हस्तक्षेप जनतन्त्र को लगातार मज़बूत बनाएगा |

* अर्थनीति

     जसवा ऐसे ज़िम्मेदार और सम्वेदनशील व्यापक भागीदारी के अर्थतन्त्र में यकीन रखती है, जिसमें हर सक्षम व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार भरपूर योगदान कर सके, अपनी क्षमताओं को बढ़ा सके, और अपनी सन्तुलित व तर्कसंगत ज़रूरत भर पर्याप्त अर्जित कर सके | इसमें अक्षम व्यक्तियों को सक्षम बनाने की सम्वेदना, प्रेरणा, अवसर और ज़रूरी संसाधनों की उपलब्धता मौजूद हो | यह एक ऐसा मानवीय, विकेन्द्रित, ज़िम्मेदार अर्थतन्त्र हो, जो केन्द्रित पूँजी और बाज़ार के स्वार्थ, मुनाफ़ाखोरी, व शोषण से पूरी तरह मुक्त हो | प्राकृतिक और मानवनिर्मित संसाधनों पर [ भावी पीढ़ियों व पर्यावरण का भी ख्याल रखते हुए ] प्रभावी सामूहिक सामाजिक नियन्त्रण हो | इसी के साथ आर्थिक जनतन्त्र और वैयक्तिक आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी होगा कि आवश्यकतानुसार लोगों की संसाधनों तक वैयक्तिक पहुँच भी सन्तुलित ढंग से सुनिश्चित की जाए |
      कृषि की प्रमुखता सुनिश्चित करते हुए उद्योग, निर्माण, सेवा आदि विभिन्न क्षेत्रों में निवेश और विकास का विवेकपूर्ण सन्तुलन क़ायम करना होगा | अधिकतम लोग उत्पादक-प्रक्रिया में शामिल हों – इसके लिए रोज़गार को मौलिक अधिकार बनाना होगा | आत्मनिर्भरता-स्वावलम्बन का लक्ष्य अपनी मेहनत, अपनी पूँजी, अपने संसाधनों और सामूहिक-सहकारी उपक्रमों के ज़रिये हासिल करना होगा | लोगों की ज़रूरतों और आय के न्यूनतम व अधिकतम स्तरों के अन्तर का अनुपात 1:10 से ज़्यादा न हो; और ग़ैरबराबरी के इस अन्तर को लगातार घटाते जाना होगा | शारीरिक श्रम और मानसिक श्रम की मान्यता और सम्मान के अन्तर को ख़त्म करना होगा | निःशक्त, अशक्त, अक्षम, बुज़ुर्ग और बीमार, आर्थिक अभाव का शिकार न बनें – यह सुनिश्चित करना होगा | अर्थव्यवस्था विदेशी पूँजी पर पूर्ण निर्भरता से मुक्त रहे, और उसके साथ सन्तुलित सहयोग का रास्ता बने – यह सुनिश्चित कर लेना होगा |

* समाज

      जसवा लिंग-यौन, नस्ल-रंग के प्राकृतिक [ क़ुदरती ] फ़र्क \ अन्तर के आधार पर किसी भेदभाव में यकीन नहीं रखती | जसवा जाति-वर्ण-पन्थ सरीखी मानवनिर्मित सामाजिक ग़ैरबराबरी की सभी अप्राकृतिक पहचानों को पूरी तरह ख़ारिज करती है | अलग-अलग समय पर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पनपे विभिन्न विश्वासों-धर्मों के केवल उस ख़ास हिस्से का जसवा आदर करती है, जो मानवीय मूल्यों और सम्वेदनाओं को मज़बूत बनाने में उदारता के साथ सार्थक योगदान करता है | लेकिन धर्मों-सम्प्रदायों-विश्वासों की जड़ता, सम्वेदनहीनता, कट्टरपन, रूढ़िवाद, अवैज्ञानिक सोच, अन्धविश्वासों, कुतर्कों, और आत्मश्रेष्ठता के  आडम्बरों और अहंकारबोधों को जसवा सिरे से ख़ारिज करती है; साथ ही उन्हें मानवीय एकता-एकजुटता और मानवता के विकास के लिए बेहद ख़तरनाक मानती है | जसवा तमाम भेदभावों और ग़ैरबराबरी से मुक्त, प्राकृतिक [ क़ुदरती ] फ़र्कों और भिन्नताओं के सम्मान को सुनिश्चित करते हुए पूर्ण बराबरी के ऐसे समाज में यकीन करती है, जिसमें जीवन की गरिमा और मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा जीवन्त ऊर्जा और वैज्ञानिक सोच के साथ सुनिश्चित हो, विकसित हो |

* संस्कृति       

      जसवा के लिए संस्कृति की पहचान का आधार है मूल्यबोध और उसका लगातार विकास ! जसवा प्रकृति और पर्यावरण के पूरे सन्तुलन के साथ ऐसी उदात्त मानवीय संस्कृति में यकीन रखती है, जो पूर्व और पश्चिम के हठीले श्रेष्ठताबोध और अहंकार से मुक्त हो | ऐसी सम्वेदनशील मानवीय संस्कृति, जिसमें न केवल इस बात का एहसास हो कि देश और दुनिया के विभिन्न अंचलों की सांस्कृतिक धाराओं ने उसे व्यापकता दी है, समृद्ध बनाया है; बल्कि इसके लिए कृतज्ञताबोध भी हो, ताकि ऐसी तमाम धाराओं की ख़ूबियों को संजोया और सुरक्षित रखा जा सके | इसी के साथ इन धाराओं से जुड़ी उन नकारात्मक प्रवृत्तियों एवम् विकृतियों को पहचानने और चिन्हित करने की समझ भी हो, ताकि उन्हें छोड़ देने और समाप्त कर देने का कर्तव्यबोध भी विकसित हो सके | देश और दुनिया के तमाम अंचलों के विभिन्न सांस्कृतिक रंगों से सजी इस उदात्त मानवीय संस्कृति को समय के साथ ज़्यादा समृद्ध, ज़्यादा व्यापक, ज़्यादा उदार और ज़्यादा गरिमामय बनाते जाने का दायित्व लेना होगा |

* दुनिया [ अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य ]

     अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी जसवा विभिन्न देशों की बराबरी और विकास के समान अवसरों में यकीन रखती है | विकसित एवम् विकासशील देशों को कम विकसित एवम् अविकसित देशों की मदद ज़िम्मेदारी के साथ करनी होगी [ अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए नहीं ] |
जनभागीदारी वाली जनतान्त्रिक व्यवस्था और सामूहिक-सामुदायिक विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था में अपने दृढ़ विश्वास के साथ जसवा सिद्धान्ततः हर देश की अपनी प्रभुसत्ता और अपनी राजनैतिक-आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था को देश विशेष का हक़ मानती है | जसवा यह मानती है कि किसी भी देश की व्यवस्था में फेरबदल का हक़ उसी देश की जनता को है | किसी भी देश में मानवाधिकारों के हनन का सवाल बेशक वैश्विक चिन्ता, प्रतिवाद व प्रतिरोध का मुद्दा बनता है, लेकिन ऐसे मामलों में हस्तक्षेप सन्तुलित विश्व जनमत के द्वारा होना चाहिए | किसी भी राष्ट्र या राष्ट्रों के गुट को एकतरफ़ा तौर पर मनमाने ढंग से ऐसा कोई फ़ैसला करने का हक़ नहीं होना चाहिए |
दुनिया के देशों के बीच आपसी सम्बन्धों को बढ़ावा मिलना चाहिए | उनके बीच आवागमन को अधिकाधिक आसान और उदार बनाना होगा | षड्यन्त्र, तोड़-फोड़, आतंकवादी और विध्वंसक गतिविधियों पर [समान मानदण्ड के साथ] कड़ाई से दुनिया भर में रोक लगानी चाहिए |

जसवा सरहदों की अनावश्यक पाबन्दियों से मुक्त एक हथियारमुक्त और युद्धमुक्त दुनिया में यकीन  रखती है | इस दिशा में बढ़ने के शुरुआती क़दम के बतौर परमाणु हथियार, जैव हथियार, रासायनिक हथियार बनाने, व सुरक्षा के नाम पर प्रतिरोधक हथियार के बतौर रखने, तथा इस्तेमाल या इस्तेमाल की धमकी को विश्वमानवता के ख़िलाफ़ अपराध के रूप में घोषित किया जाना चाहिए | हथियारों के अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार, ख़रीद-बिक्री पर कड़ाई से प्रभावी प्रतिबन्ध लगाना चाहिए |

जसवा का मानना है कि ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ की मौजूदा शक्ल बदलनी चाहिए | महासभा की तरह सुरक्षा परिषद में भी सभी सदस्य-देशों का बराबर दर्जा होना चाहिए | सुरक्षा परिषद के सदस्य निश्चित कार्यकाल के लिए चुने जाने चाहिए, और उनमें कोई भी स्थाई सदस्य नहीं होना चाहिए | किसी भी सदस्य-देश को ‘वीटो’ का विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए | सुरक्षा परिषद में क्षेत्रवार, विवेकसम्मत प्रतिनिधित्व के साथ स्थान तय होने चाहिए और उनका चुनाव चक्रीय क्रम में होना चाहिए | सुरक्षा परिषद में किसी भी देश को लगातार दूसरी बार नहीं चुना जाना चाहिए | इसके सभी फ़ैसले सर्वसम्मति, या आम राय, या 2\3 बहुमत से ही होने चाहिए | सुरक्षा परिषद को अपने सभी फ़ैसलों के लिए महासभा के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए |

जसवा का मानना है कि अन्ततः संयुक्त राष्ट्र संघ सहित तमाम अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों तथा समझौतों व सन्धियों [ जैसे विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, पर्यावरण व अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित समझौतों व सन्धियों ] की शक्ल पूरी तरह बदलनी चाहिए | कुछ मुल्क देने वाले, सबक़ सिखाने वाले और लूटने वाले; तथा बाक़ी कुछ पाने की उम्मीद रखने वाले, निर्देश पालन करने वाले, या फिर सज़ा भुगतने वाले और लुटने वाले न रहें – इस मौजूदा शक्ल और व्यवस्था को बदले बिना न तो लूट ख़त्म होगी, न ग़ैरबराबरी ख़त्म होगी, न ही नई दुनिया बनेगी | इसके लिए पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों और भविष्य की पीढ़ियों की चिन्ता करने वाले ज़्यादा सम्वेदनशील और ज़्यादा ज़िम्मेदार ‘नए विश्व मंच’ की कल्पना करनी होगी – उसे ज़मीनी हक़ीक़त बनाने की पहलक़दमी किसी न किसी को कभी न कभी करनी ही होगी ! यह जितना जल्दी हो सकेगा, उतना ही बेहतर होगा !     

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